बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

सम्पूर्ण भारतीय रेलवे में अनेक अधिकारी अपने घरों पर चार से दस तक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों से गैर कानूनी रूप से अपना घरेलू काम करवाते हैं. क्या ऐसा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध है?


सम्पूर्ण भारतीय रेलवे में अनेक अधिकारी अपने घरों पर चार से दस तक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों से गैर कानूनी रूप से अपना घरेलू काम करवाते हैं. क्या ऐसा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध है? यदि हाँ तो इन रेलवे के अफसर-अपराधियों को सजा कैसे दियाई जावे? विशेषकर तब जबकि, ऐसा कार्य करने वाले कर्मचारी न तो विरोध कर सकते हैं और न ही वे अपने अफसरों की शिकायत ही करने में समर्थ हैं? क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें अपनी नौकरी से निकाले जाने का खतरा रहता है. यहाँ सवाल यह भी है कि ये छोटे कर्मचारियों वेतन तो भारत सरकार से पाते है और हम सब जो टेक्स देते है, उससे ही इनको वेतन दिया जाता है, ऐसे में हम सभी देश के नागरिकों को भी तो इन अपराधी अफसरों के खिलाफ मुकदमा दायर करवाने का हक़ होना चाहिये. क्या ऐसा है? कृपया मार्गदर्शन करें.  डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

विभिन्न प्रकार के शीर्षक

राजस्थान हाई कोर्ट के निर्णय
मध्य प्रदेश दिल्ली म. प्र. उ. प्र.
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
उपभोक्ता अदालत या फोरम या आयोग के निर्णय
रेलवे बोर्ड के निर्णय
रेलवे समाचार भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
रिश्वत मुआवजा दिया जाये मानसिक संताप के बदले
जिला उपभोक्ता अदालत फोरम राज्य उपभोक्ता आयोग
 

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

जज, जज बादमें हैं और अफसर पहले हैं!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
जजों को इस देश की जनता के प्रति जवाब देह होना चाहिये, आखिर उन्हें वेतन भी तो जनता से संग्रहित राजस्व से ही मिलता है. जब तक सरकार संसद के समक्ष न्यायपालिका के मामलों को रख कर साफ साफ कानून नहीं बना देती है, तब तक ऐसा ही चलता रहेगा. न्यायपालिका से तो उम्मीद थी, की वह सूचना अधिकार कानून को लागू करवाने में सहयोग देगी, लेकिन लगता है की जज, जज बादमें हैं और अफसर पहले हैं! सूचना अधिकार कानून के मामले में सभी अफसरों का रवैया एक जैसा ही लगता है. इसे बदलने के लिये आम जनता को ही सड़कों पर उतरना होगा.  

चीन की हरकतों के लिये हमारे पूर्वज जिम्मेदार हैं.

चीन की हरकतों के लिये हमारे पूर्वज जिम्मेदार हैं. भारत की नपुंसक सरकारों और हिन्दू धर्म के नाम पर हमें सिखाई गयी सहिष्णुता को सारी दुनिया हमारी कमजोरी मानती हैं. हमें अपने सांस्कृतिक चरित्र को बदलना होगा और जैसे को तैसा की नीति पर काम करना होगा, लेकिन इसमें देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और मानव-मानव में भेदभाव करने की सरकार की एवं प्रशासन की नीति में तत्काल बदलाव की जरूरत है. हमारी आंतरिक एवं बाहरी नीतियां नौकरशाही पर निर्भर हैं और नौकरशाही की दशा बेहद ख़राब है. डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

सरकार चाहे तो भ्रष्टाचार 90 प्रतिशत तक रुक सकता है!


इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि यदि केंद्र एवं राज्य सरकारें चाहें तो सरकारी क्षेत्र में व्याप्त  भ्रष्टाचार 90 प्रतिशत तक आसानी से रुक सकता है! मैं फिर से दौहरा  दूँ कि "सरकारें चाहें तो सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार 90 प्रतिशत तक आसानी से रुक सकता है!"
मेरी उक्त बात पढ़कर अनेक पाठकों को लगेगा कि यदि ऐसा होता तो भ्रष्टाचार कभी का रुक गया होता. मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता हूँ कि हाँ रुक गया होता, लेकिन समस्या ये है कि सरकार ऐसा करे क्यों? विशेषकर तब जबकि लोकतंत्र के विकृत हो चुके भारतीय स्वरुप में सरकारों के निर्माण की आधारशिला ही काले धन एवं भ्रष्टाचार के धन से ही रखी जाती हैं. अर्थात काले धन एवं भ्रष्टाचार के धन से ही तो चुनाव लड़े और जीते जाते हैं.
स्वयं    मतदात भी तो भ्रष्ट लोगों को वोट देने में आगे रहता है, जिसका प्रमाण है-अफसरों को चुनावों में जिताना, जबकि हम सभी जानते हैं की अधिकतर अफसर जीवनभर भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं. मैं ऐसे अनेक अफसरों के बारे में जनता हूँ जो 10 साल की नौकरी होते-होते एमपी-एमएलए बनने का ख्वाब देखना शुरू  कर चुके हैं. साफ़ और सीधी सी बात है-कि  चुनाव के लिए काला धन इकत्रित करना शुरू कर चुके हैं, जो भ्रष्टाचार के जरिये ही कमाया जा रहा है. फिर भी मतदाता इन्हें ही जितायेगा.
ऐसे हालत में सरकारें बिना किसी कारण के ये कैसे चाहेंगी कि भ्रष्टाचार रुके, विशेषकर तब जबकि हम सभी जानते हैं  कि भ्रष्टाचार जो सभी राजनैतिक दलों की ऑक्सीजन है. यदि सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार को ही समाप्त कर दिया गया तो इन राजनैतिक  दलों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा! परिणाम सामने है भ्रष्टाचार बेलगाम दौड़ रहा है और हम में से हर व्यक्ति इस अंधी दौड़ में शामिल होने को बेताब  हैं.
"भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून"   
अधिकतर लोगों के भ्रष्टाचार की दौड़ में शामिल होने की कोशिशों बावजूद भी उन लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जो की भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रहे हैं या जो भ्रष्टाचार को ठीक नहीं समझते हैं. क्योंकि आम जनता के दबाव में यदि सरकार "सूचना का अधिकार कानून"  बना  सकती है, जिसमें सरकार की 90 प्रतिशत से अधिक फाइलों को जनता देख सकती है, तो "भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून" बनाना क्यों असम्भव है? यद्यपि "भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून" कानून बन जाने से भी अपने आप किसी प्रकार का जादू तो नहीं होगा, लेकिन ये बात तय है कि यदि ये कानून बन गया तो भ्रष्टाचार को रुकना ही होगा.  "भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून"  बनवाने के लिए उन लोगों को आगे आना होगा जो भ्रष्टाचार से परेशान हैं, भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं, भ्रष्टाचार से दुखी हैं और जो इसके खिलाफ हैं.
अनेक लोगों का कहना है की भ्रष्टाचार की गंगा में तो हर कोई हाथ धोना चाहता है. फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई क्यों होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार से तो सभी के बारे-न्यारे होते हैं.
जबकि सच्चाई ये नहीं है, यदि सच्चाई जाननी है तो निम्न तथ्यों को ध्यान से पढ़कर सोचें और फिर निर्णय लें. कितने लोग भ्रष्टाचार के पक्ष में हो सकते हैं? कृपा करके निम्न को पढें:-
जो लोग भ्रष्टाचार के हिमायती हैं या जो लोग भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगा रहें, क्या वे उस दिन के लिए सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-   
1. भ्रष्टाचारियों का कोई अपना बीमार पड़े और उसे केवल इसलिए नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवाएं कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरी नहीं उतरने के बाद भी अप्रूव्ड करदी गयी थी.
2. भ्रष्टाचारियों का कोई अपना बस में यात्रा करे और मारा जाये और उस बस की इस कारण दुर्घटना हो जाये, क्योंकि बस में लगाये गए पुर्जे हलके दर्जे के थे, क्योंकि कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरे नहीं उतरने वाले पुर्जे अप्रूव्ड कर दिए थे.
ऐसे और भी अनेक उधाहरण गिनाये जा सकते हैं, मेरा आशय केवल यह बताना है की भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहात लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि  भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता. अतः हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
यदि आपको लगता है की भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिये तो "भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून" बनाने के लिये अपने-अपने तरीके से दबाव बनायें. सरकार किसी भी दल की हो लोकतंत्र में एकजुट जनता की मांग को नकारा नहीं जा सकता. 
"भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून" है क्या?
भारत सरकार की विधि अधीन दिल्ली से 1994  से पंजीबद्ध एवं अनुमोदित  "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में लगातार कार्य करते हुए मैंने जो कुछ अनुभव किया है, उसके अनुसार  "भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून" के लिये संसद एवं केंद्र सरकार को वर्तमान कानूनों में कुछ बदलाव करने होंगे एवं कुछ नए कानून बनने होंगे, जिनका सार निम्न प्रकार परस्तुत है :-
कानूनों में जो बदलाव जरूरी हैं.

01. भ्रष्टाचार अजमानतीय अपराध हो और छः माह में फैसला हो : भ्रष्टाचार, शोषण, गैर बराबरी, अन्याय, भेदभाव आदि सभी गैर कानूनी कामों को अजमानतीय एवं संज्ञेय अपराध घोषित किया जावे और मुक़दमे का निर्णय होने तक किसी भी स्थिति में जमानत देने का प्रावधान नहीं होना चाहिये. इसके साथ-साथ ये भी नियम हो की हर हाल में मुकदमें का फैसला 6 माह के अन्दर करना जरूरी हो, अन्यथा जज के खिलाफ कार्यवाही हो.
02. अपराधी अफसरों एवं कर्मचारियों की गिरफ्तारी के लिये पूर मंजूरी क्यों?
सरकारी अफसरों एवं कर्मचारियों के खिलाफ उक्त प्रकार के मामलों में एवं आईपीसी में वर्णित अपराधों में मुकदमा दर्ज करने के लिये और गिरफ्तारी करने के लिये सरकार से पूर्व मंजूरी लेने की कोई जरूरत नहीं हो. 
03. कानून जानने वालों को कानून की क्रियान्विति सौंपी जावे : क्या हम किसी ऐसे व्यक्ति से अपना इलाज करवाने को राजी होंगे, जिसके बारे में हमें पता हो की वह चिकित्सा शास्त्र के बारे में कुछ नहीं जानता है? क्या किसी ऐसे व्यक्ति को खेती का काम सौंपा जा सकता है, जिसे खेती का ज्ञान नहीं हो?
निश्चय ही हममें से कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा, लेकिन इस देश के लोगों का दुर्भाग्य है की कानून को लागू करने वाले पुलिस विभाग में नीचे से ऊपर तक किसी के लिये भी कानून की शिक्षा एवं कानून की डिग्री जरूरी नहीं है. केवल कुछ माह की ट्रेनिंग करवा देने से पुलिस यदि कानून की ज्ञाता हो सकती है तो फिर कानून के कालेजों की क्या जरूरत है? दुःख तो ये भी है की पुलिस को अभी भी अंग्रेजों के ज़माने की वो ट्रेनिंग दी जा रही है, जिसमें भारतियों का उत्पीड़न करना अंग्रेज पुलिस अपना अधिकार मानती थी. इसीलिये आज भी आम भारतीय को पुलिस द्बारा इन्सान नहीं समझा जाता और उसके विरूद्व जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता है. ये सोचने वाली बात है की "जो पुलिस खुद कानून नहीं जानती वो क्या तो कानून लागू करेगी और क्या  कानून का सम्मान करेगी?"
इसलिये भविष्य में एलएलबी की डिग्रीधारी और मनोवाज्ञानिक परीक्षा में "संवेदनशीलता योग्यता" को पास करने वाले लोगों को ही पुलिस सेवा में भर्ती किया जावे. जो पुराने काम कर रहे हैं, उनमें से जिनके पास कानून की डिग्री नहीं है, उन्हें अपराधों की जांच करने का अधिकार नहीं दिया जावे और इन्हें "संवेदनशीलता योग्यता" अर्जित करने के लिये बाध्य किया जावे. अन्यथा इन्हें अन्य सेवाओं में भेज दिया जावे.
04. रिपोर्ट (एफआईआर) लिखने का बाध्यकारी कानून हो : देश के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ और किसी भी मामले की रिपोर्ट (एफआईआर) लिखने का बाध्यकारी कानून हो और रिपोर्ट नहीं लिखने वाले पुलिस वाले को कम से कम दस साल की सजा का कानून हो. इसके साथ-साथ हर जिले में सर्वाधिक रिपोर्ट लिखने वाले पुलिस थाने को प्रत्येक  २६ जनवरी को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जावे.
05. जानबूझकर मामले में अकारण विलंब करने पर केस चलाया जावे : जनता के हितों से जुड़े व्यक्तिगत मामलों को स्वीकार करने के बाद अंतिम निपटान करने की समय सीमा निर्धारित हो, इस सीमा में काम नहीं करने वाले लोक सेवक को बिना किसी शिकायत के उसके इंचार्ज द्वारा तत्काल पुलिस के हवाले किया जावे और उसके विरूद्व जानबूझकर मामले में अकारण विलंब करने का केस चलाया जावे, और पहली बार में एक वर्ष के वेतन के बराबर जुर्माने की सजा का प्रावधान हो. दुबारा अपराध करने पर उसे नौकरी से निकल दिया जावे. जो इंचार्ज इस कानून का उल्लघन करे उसे दुगनी सजा दी जावे.
06. रिश्वत देने को अपराध नहीं माना जावे : वर्तमान में रिश्वत लेना एवं देना दोनों हीं अपराध माने गये हैं. इसके कारण भ्रष्टाचारी पूरी तरह से सुरक्षित हैं. इस कानून में बदलाव करके रिश्वत देने को अपराध नहीं माना जावे, क्योंकि 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में लोग विवश होकर रिश्वत देते हैं. ऐसा बदलाव होने पर रिश्वतखोरों को हमेशा इस बात का दर लगा रहेगा की काम निकलने के बाद रिश्वत देने वाला, रिश्वत की लेने की शिकायत कर सकता है.
07. रिश्वत या भ्रष्टाचार की सजा उम्र कैद एवं फांसी :  किसी भी लोक सेवक के खिलाफ रिश्वत या भ्रष्टाचार का अपराध सिद्ध होने पर पहली बार में उसे उम्र कैद की सजा और दुबारा अपराध सिद्ध होने पर फांसी की सजा का सख्त कानून बनाया जावे.
 08. शोषण, अपमान, तिरस्कार, उत्पीड़न, गैर बराबरी, भेदभाव, छुआछूत, जातिगत उत्पीड़न आदि सभी मामलों को आईपीसी में शामिल करके अजमानतीय अपराध घोषित किया जावे और इनमें 10 साल से काम सजा का प्रावधान नहीं हो. सरकारी कार्यालयों में ऐसे अपराध होने पर वहां के प्रभारियों को जिम्मेदार बनाया जावे और अपने नियंत्रण में काम करने वालों के अपराधों की इंचार्ज या कानून के अनुसार नियुक्त लोक सेवक यदि पुलिस को रिपोर्ट नहीं करे तो उसके विरूद्व भी कानून में दुगनी सजा का प्रावधान हो.
09. विभागीय जांच का नाटक बंद हो :  अधिकतर देखने में आता है की आईपीसी में जिन अपराधों की सजा तीन से दस साल का कारावास है, ऐसे मामलों को विभागीय कार्यवाही की आड़ में दबा दिया जाता है और ले-देकर रफा-दफा कर दिया जाता है. इसलिये जो कृत्य आईपीसी में अपराध हों, उन मामलों की विभागीय जांच करके उनका विभागीय निपटान करना भी आईपीसी में अपराध बनाया जावे और ऐसा करने की सजा भी दस साल से कम नहीं हो.
10. विभागीय सतर्कता एजेंसियों में स्थाई नियुक्ति हो :  विभागीय सतर्कता एजेंसियों में नीचे से ऊपर तक सभी को उन्नत चरित्र के अनुशासित एवं विभाग के तकनीकी ज्ञान पर पकड रखने वालों को स्थाई रूप से नियुक्त किया जावे, जिससे उन्हें वापस अपने पैतृक विभाग में जाने पर सताये जाने का डर नहीं रहे और वे निर्भीकता पूर्वक काम कर सकें. केवल यही नहीं विभागीय सतर्कता एजेंसियों में  काम करने वाले यदि स्वयं भ्रष्टाचार या रिश्वत के अपराध में दोषी पाये जाएँ तो उन्हें दुगनी सजा से दण्डित किया जावे. सीबीआई, आईबी, सीआईदी सीआईडी,  एसीबी आदि जाँच एजेंसियों में भी इसी तरह से भारती की जावे.
भ्रष्ट राजनेताओं से मुक्ति सम्भव है
11. भ्रष्ट, रिश्वतखोर एवं कमीशनखोर राजनेताओं से भी मुक्ति सम्भव है, लेकिन कैसे? कृपया नीचे लिखा विवरण पढें :-
(1) चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों से चुनाव आयोग द्वारा एक जो शपथ पत्र भरवाया जाता है, इसे थोडा और विस्तृत किया जावे. 
(2) इस शपथ पत्र में जो-जो भी जानकारियाँ भरी जावें, उन्हें उम्मीदवार के खर्चे पर, चुनाव आयोग द्वारा प्रत्येक चुनाव बूथ पर 20 फीट लम्बे एवं 10 फीट चौडे होर्डिंग पर मतदाताओं को आसानी से दिख सकने वाले मुख्य द्वार पर,  फॉर्म सही पाये जाने के 2 दिन के अन्दर लगवाया जावे और मतदान का परिणाम घोषित होने तक लगे रहने दिया जावे.
(3) उक्त होर्डिंग पर शपथ पत्र के विवरण के आधार पर निम्न उदहारण के अनुसार विवरण मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा जावे :
मैं हूँ आपका प्रिय उम्मीदवार
वोट देने से पूर्व मेरे वारे में जानें
नाम : भीम सिंह सेवार्थी,                  शिक्षा : 10 वीं फ़ैल,
परिवार का विवरण : पहली पत्नी से तलाक, दूसरी पत्नी, कुल चार पुत्र, तीन पुत्री. पुलिस या कोर्ट में
मेरे खिलाफ चल रहे मुकदमों का विवरण
हत्या के 10, 10, कालाबाजारी के 07, भ्रष्टाचार के 15, डकैती के 3, दलित-आदिवासी उत्पीडन के 25, बलात्कार के 6, सामूहिक बलात्कार के 4, अपरहण के 11, आय से अधिक सम्पती  के 5, चोरी के 10,  चाकूबाजी के 20 एवं  राह चलते लोंगों पर हमला करने के 8,
उन मुकदमों का विवरण जिनमें सजा हो चुकी है, लेकिन अपील लंबित है
बलात्कार के दो, हत्या के तीन, हमले के पांच, अपरहण के दो.
मेरी एवं मेरे परिवार की सम्पत्ती का विवरण
दस साल पहले मेरी सम्पत्ती एक लाख 25 हजार रुपये थी
पिछले दस साल के दौरान मैं सरपंच/प्रधान/जिला प्रमुख/एमएलए/ एमएलसी/एमपी पद/पदों पर रहा और अब मेरी सम्पत्ती निम्न प्रकार है :
मेरी 5 करोड़, मेरी पत्नी की 10 करोड़, पुत्रों को 15 करोड़, पुत्रियों की 10 करोड़.
पेट्रोल पम्प एवं गैस एजेंसी
मेरे एवं मेरे परिवार के लोगों के नाम अभी तक केवल 4 पेट्रोल पम्प एवं 4 गैस एजेंसी ही हैं. मैंने 3 पेट्रोल पम्प एवं 4 गैस एजेंसियों के लिये आवेदन किया हुआ है.
चुनाव का अनुमानित खर्चा
इस चुनाव का अनुमानित खर्चा 10 करोड़ है, जिसके लिये मुझे 5 करोड़ मेरी पार्टी से मिलने, 3 करोड़ मेरे मित्रों एवं 2 करोड़ मेरी जेब से खर्च करूंगा. चुनाव के खर्चे का पूर्ण विवरण चुनाव आयोग को पेश कर दूंगा. इस चुनाव में विजयी होने पर मैं चुनाव क्षेत्र के विकास एवं लोगों के उत्थान के लिये मैं कम से कम निम्न तीन काम जरूर करूंगा.
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मेरे उक्त विवरण को जान समझ कर कृपया मुझे वोट देकर विजयी बनायें. मैं आगे भी आपकी सेवा करना चाहता हूँ. धन्यवाद !

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

सूचना अधिकार कानून की ऐसी-तैसी की जा रही है!


श्री द्विवेदी जी, सादर प्रणाम।  
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के समक्ष अनेक परेशान लोगों ने कानूनी सवाल उठाया है, जो आपके सामने समाधान हेतु विनम्रता पूर्वक प्रस्तुत है

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत सूचना से वंचित करने का जन सूचना अधिकारीयों ने एक ऐसा नया रास्ता निकला है कि इस कानून और अधिकार की ऐसी-तैसी कर दी हैहो ये रहा है कि चाही गयी सूचना को प्राप्त करने के लिए वाकायदा आवेदक को डाक से सूचित किया जाता है, कि ...... पेज की सूचना हेतु .... रुपये जमा करेंरुपये जमा करने के बाद आवेदक से कहा जाता है कि आपको सुचना डाक से भेज दी जायेगी, उसके बार-बार आग्रह करने पर भी, उसे हाथोंहाथ सूचना नहीं दी जाती है

कुछ दिन बाद उसे रजिस्टर्ड डाक मिलती है, जिसे पाकर वह खुश होता है, लेकिन लिफाफा खोलकर देखता है तो, ये क्या? लिफाफे में खाली या रद्दी कागज निकलते हैंया एक ही दस्तावेज की 5-10 फोटो कॉपी करवाकर रख दी जाती हैं, लेकिन असल जानकारी वाला वह दस्तावेज नही दिया जाता हैजिससे कि भ्रष्टाचार की पोल खुलने की संभावना होती हैअपील करने पर अपील अधिकारी निर्णय देता है कि फाइल को देखने से पता चलता है कि सारी जानकारी दे दी गयी हैंऔर अपील निरस्त कर दी जाती हैहर व्यक्ति के पास इतना समय नही होता कि वह मुख्य सूचना आयुक्त के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर इन कारगुजारियों को बतला सके, क्योंकि रिकोर्ड पर तो सब कुछ ठीक ही होता है

ऐसे में, इन चालाक एवं भ्रष्ट लोगों को दंडित कराने हेतु किस कानून के तहत, कहाँ और क्या कार्यवाही की जावे?

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?

दुनियां में जितने भी अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, शोषण, उत्पीड़न, गैर-बराबरी आदि गैर कानूनी अपराध या मनमानियां होती हैं, उन सबके पीछे हमारी चुपचाप इन्हें सहते रहने की पुरानी, बल्कि जन्मजात आदत ही जिम्मेदार है। हमारे सुसुप्त मन में कहीं न कहीं एक डर समाया हुआ है। जब तक हम इससे मुक्ति नहीं पाएंगे, हम अपनी पहचान नही बना सकते। हम सम्मान एवं शान्ति के साथ अपने जीवन को नहीं जी सकते । इस बात को जानते हुए भी यदि हम चुपचाप अन्याय और अत्याचारों को सहते जा रहें हैं तो फ़िर हम सबका भगवान् ही मालिक है। ऐसे में हमें किसी से भी, किसी भी प्रकार की शिकायत करने का कोई हक़ नहीं है। लेकिन इससे काम नहीं चल सकता। हममें से अधिकांश अन्याय के खिलाफ खड़े होना तो चाहते हैं, लेकिन किसी का सपोर्ट नहीं मिल पाने के कारण हिम्मत जवाब दे जाती है। माना की समाज में भ्रष्टाचार एवं अत्याचार तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन इन सबका मुकाबला करने वालों की संख्या भी तो बढ़ी है। आपके लिए भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) का राष्ट्रीय मंच उपलब्ध है। जो सबसे पहले लोगों को अपनी बात बोलना सिखाता है। क्योंकि "बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?" इसलिए दोस्तों बोलो अपनी बात पुरी ताकत से बोलो। अन्यत्र कहीं नहीं बोल सकते तो इस ब्लॉग पर बोलो आपकी आवाज़ को ताकत देने के लिए हम हैं, भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के हजारों आजीवन सदस्य । लेकिन एक बात और सबसे पहले आप अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने की आदत डालो, तब ही आपको अधिकारों की मांग करने का नैतिक हक है। - आपका डॉ पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) ।